|| घर कहीं गुम हो गया ||
Set two : Rhythm and Rhymes
Prompt :2 (#gharkhigumhogya)
Poet : GS_Stella
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अहंकार के इस द्वंद्व-युद्ध में,
संबंधों का यूँ मोल लग गया,
उदासी में घिरा, जो आहत था कभी,
आज वो घर कहीं गुम हो गया।
पूछता था वो घर भी कभी…
गूंजा करती थी किलकारियाँ जहाँ,
बँट गए हैं आज,
रिश्ते ही क्यों वहाँ?
सुख-दुःख में सदा थे जो साथ,
तनहाइयों में क्यों गुम हैं,
उनके दिन और रात?
गुम गयीं हैं प्रीत की वो बातें सभी,
घर के कोनों में जो गूंजा करती थीं कभी।
ढलती रेत से फिसलने लगे जब नाते,
क्यों नहीं था उनको संभाला तभी?
कहता था वो घर भी कभी…
क्यों भूल गए अपनी मर्यादा?
क्यों भूल गए किया था जो वादा?
थामा है हाथ, तो ख्याल करें।
चलना है साथ, तो मान रखें।
खो गए वो मासूम से पल…
जहां मैं और तुम नहीं,
बस हम हुआ करते थे।
जहां अपनों के बिना,
हर मौसम बेरंग हुआ करते थे।
गुम हो गयी वो बेपरवाह सी मुस्कुराहट,
गुम हो गयी वो संग चलने की चाहत।
कोई लौटा दे वो गुज़रे हुए पल,
यादों के पन्नों में, जिनकी सिमटी है आहट।
होता था वो निराश जब भी,
करता था घर यह सवाल तब ही।
कहाँ गयीं आज माँ की लोरियाँ?
कहाँ हैं दादी-नानी की परियों की कहानियाँ?
कहाँ गईं वो गर्व की शाबाशियाँ?
क्यों गुम हैं पिता की प्यार भरी थपकियाँ?
लगता है, अब थक गया वो भी।
अब तो उस घर की,
आह भी सुनायी नहीं देती।
संग जोड़े रखने की थी जो चाह,
अब तो वो भी दिखाई नहीं देती।
टपका था एक आँसू उसकी आँख से भी,
जब जाना कि वो घर से मकान हो गया।
खोखला कर, जिसे बेजान कर दिया,
तड़पता हुआ वो घर, आज कहीं गुम हो गया।
© गरुणा सिंह (Stella)
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