कभी...
मिलेंगे कभी तुझसे सारी हदों के पार कभी,
जब तुम में मैं ना रहे,
जब मुझ में मैं ना रहे।
जब आसमां सुर्ख सा रहे,
जब समां उजला न रहे।
जब जहां भर की बातें न रहे,
जब यहाँ वहाँ का फर्क न रहे।
मिलेंगे कभी तुझसे इस जहां के पार
जहाँ हर लफ़्ज़ एक वादा हो
जहाँ हर कसम एक इरादा हो।
चलो जाने देते हैं ये कसमो वादों की बातें
जब मिलेंगे तो करेंगे नहीं,
इस झूठे ज़माने की बात उस रूहों के जहां में कभी।
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