#57# 26.02.2018 (Hindi)
वो सुनता रहा
मेरे दिल की कही हर बात
जैसे की हैं जरुरी से मेरे हर लफ्ज़
मेरे दिल से जुड़े हर जज़्बात
कुछ ऐसा था
उसका अपनापन कि
हर वक्त हर तरफ
बस वो ही रह सकता था मेरे पास
जब तक समझ पाते साजिश
मेरे अपनो से अलग कर उसने
मेरे हौसलों के पंख नोच दिए
मैं उड़ ना जाऊं दूर कहीं
खिड़कियां दरवाजे बंद किए
सोचे समझे साजिश में
अब मैं फंसी हुई वो चिड़िया थी
बिन पंखों के बेबस लाचार
डरावनी सी जिसकी दुनिया थी
सच जब आया सामने
धक्का अंदर तक तोड़ गया
मेरी कही हर एक बात
अब थी जैसे मेरे ही खिलाफ
तकलीफ हुई
सब देख के फिर भी
खुद पर भरोसा कायम था
मेरे बारे में जो उसे पता था
वो थी बस एक बूंद
गहरा सागर तो अब भी
मुझमें ही समाया था
दोराहे पर खड़ी थी मैं
एक ओर थी राह पुरानी सी
लेकिन बिल्कुल जानी पहचानी सी
ले जाती मुझे जिस मंजिल तक
अब उसका कोई मोल न था
दूसरी तरफ अंजान सफर
बिल्कुल नयी सी मंजिल
अंदर भी था अंजान सा डर
क्या होगा अगर मैं भटक गई
घनी राहों में ही अटक गई
हाथ बढ़ाया मेरे अपनों ने
नये हौसलों के बने नये पंख दिए
बोले चल उड़ चल मंजिल तक
हां.. हम सब हैं साथ तेरे
एक मुस्कान के साथ
मैंने नये पंख लगा लिए
कल के बारे में क्या सोचूं
अभी हूं तैयार मैं उड़ने के लिए
उस धोखे ने जो सबक दिया
अब याद रहेगा हमेशा
जो उसमें भी अच्छी बात रही
मैंने अपनों को करीब से देखा
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