#74# 15.03.2018 (Hindi)
किसे पता था
कि जाने अनजाने
क़िस्मत हमें मिलाने की ही कोशिश में थी
किसे पता था
कि चाहे अनचाहे
हमारी मुस्कुराहटों की चाबी आप ही की मुट्ठी में थी
एक वो वक्त था
जब एक दूसरे के सामने से
हम गुजर जाते थे दो अजनबियों की तरह
और एक वक्त आज का है
जब हम आ मिले हैं खिलखिलाती सी
दो गलियों की तरह
तब हम क्यों दूर थे
ये जान के भी क्या फायदा?
अब जो साथ मिले हैं तो
हमें बस आपमें घुल जाने दो
खुशनुमा माहौल में
हमें बस आपमें मिल जाने दो
ओढ़ लेने दो ये सुकून
जो हर बार खींच लाता है हमे पास
ओढ़ लेने दो ये सुकून
जो बेअसर कर दे गिले-शिकवे जैसे हर एहसास
इन लम्हों को जी भर के जी लें
अब के लिए तो बस यही इतनी ही ख्वाहिश है
कल जब आएगा तब की तब सोचेंगे
कि आगे हम-दोनों के लिए क़िस्मत की क्या फरमाइश है
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